घर के दरवाज़े पर स्कूल

pratham school

सर्दियों के चलते जनवरी के तीसरे सप्ताह में बिहार के सभी स्कूल बंद करने के आदेश फिर से आ गए हैं। अभी दो दिन भी नहीं हुए थे कि स्कूल फिर से बंद हो गए हैं ।

प्रदेश सरकार की पहल पर बच्चों की भाषा और गणित की दक्षताओं में वृद्धि के लिए पिछले कुछ महीनों से ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ की ओर से कार्यक्रम चलाया जा रहा था।

अक्टूबर 2024 की शुरुआत में, प्रथम की ओर से ब्लॉक स्तर पर काम करने वाली चांदकिरन ने दो विद्यालयों- राजकीय बुनियादी विद्यालय भितिहरवा और राजकीय विद्यालय श्रीरामपुर में कक्षा 3 से 5 के बच्चों के साथ सप्ताह के 6 दिन, और हर दिन 3 घंटे काम शुरू किया था । वे एक स्कूल में दस दिन बच्चों के साथ काम करती हैं और फिर दूसरे विद्यालय में चली जाती हैं । इस तरह दोनों स्कूलों में 30 दिन काम करने का लक्ष्य है। सबसे पहले बच्चों में भाषा और गणित विषय के स्तर की जांच की गयी । उसके आधार पर उनके समूह बनाये गये ।

चांदकिरन जिनकी यह पहली नौकरी कुछ महीने पहले लगी है, स्नातक हैं और अपने पति के साथ आई हैं। बताती हैं कि उनको पटना में पांच दिन का प्रशिक्षण दिया गया था। वे हर रोज बच्चों से बातचीत करती हैं, गीत सुनाती हैं, खेल और गतिविधियां कराती हैं। कहानी पढ़कर सुनाती हैं, सवाल पूछती हैं। जब वे कहानी का वाचन करती हैं तो बच्चे कहानी के शब्दों पर उंगली चलाते हैं और अक्षरों और शब्दों को पहचानने का अभ्यास करते हैं। अंकों, संख्याओं की पहचान, गणित की बुनियादी संक्रियाओं को सीखने का अभ्यास करते हैं|

श्रीरामपुर गांव के स्कूल में कक्षा 3 – 5 में 120 बच्चे हैं। स्कूल बंद है तो गांव के ही एक घर के सामने खुली जगह में कक्षा 3 से 5 के बच्चे इकट्ठा हैं । उनकी देखा-देखी कक्षा 1 और 2 के भी कुछ बच्चे आ गए हैं।

वे बच्चों को कहानी के माध्यम से भाषा सिखाने की कोशिश कर रही हैं। हमारे देखते ही बच्चे खड़े हो जाते हैं और ऊंची आवाज में गुड मार्निंग कहते हैं। उन्हें बैठने का इशारा होता है । लेकिन वे थोड़ी देर खड़े होकर आने वालों को देखते रहते हैं, उनमें कौतूहल है । बहुत छोटे बच्चों को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा है। कुछ बैठे, कुछ दूसरों की देखा-देखी खड़े होने, बैठने की कोशिश में हैं। कुछ अपने में मग्न हैं ।

तब तक घर के मुखिया निकल आये हैं और सबको गौर से देखने लगे हैं । अभी निश्चित नहीं कर पा रहे हैं, क्या करना है । वे किसी को कहते हैं “जरा चाय वाय बनवा लो”। मैं कहता हूं, “चाय मत बनवाइये।” वे धीमी आवाज़ में कहते हैं, “आप हमारे दरवाज़े पर आए हैं, कह रहे हैं, चाय भी नहीं पियेंगे!”

हमारे साथियों ने बारी-बारी बच्चों के साथ कुछ पूछना और करना शुरू कर दिया है। बच्चों के लिए यह शायद नया अनुभव है|

“कौन-कौन पढ़ सकता है?” इसके जवाब में थोड़े से हाथ उठते हैं । फिर देखा-देखी और भी हाथ उठते हैं | चांदकिरन के पास जो कहानियों की किताब है, उसे लेकर बारी-बारी से बच्चों को दिया जा रहा है । वे पढ़ते हैं। चौथी और पांचवी के बच्चों ने बिना अटके, प्रवाह से पढ़ लिया है । कक्षा 3 के बच्चे भी कमोबेश पढ़ना सीख गए हैं।

बच्चों से अगला सवाल है, “कौन कौन कहानी सुनाएगा ?” कई हाथ हवा में लहरा रहे हैं, आवाजें आ रहीं हैं। वे अपनी ओर ध्यान खीचने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ को मौका मिलता है । वे बड़े गंभीर भाव से आगे आकर कोई कहानी, जो उन्होंने कहानियों की किताब से सुना पढ़ा होगा, उसे सुनाते हैं।

उनके लिए तालियां बजती हैं। बच्चों के उत्साह की झलक उनकी तालियों की आवाज में सुनी जा सकती है।

बच्चों के सीखने के स्तर का अंतिम मूल्यांकन अभी होने वाला है। “कैसा लग रहा है?” पूछने पर चांदकिरन कहती हैं- “बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता है। जब वे अच्छे से पढ़ते हैं तो बहुत अच्छा लगता है और अपने बचपन को याद करती हूं।”

घर की पहली मंजिल के बरामदे में एक बुजुर्ग महिला रेलिंग के उस तरफ कुछ इस तरह बैठ कर कि उनको देखा न जा सके, सब कुछ बड़े ध्यान से देख रही हैं ।

चाय आ गयी है। सबको चाय के कप देता युवक पूछने पर बताता है, वह दिल्ली में रहकर कंपटीशन की तैयारी कर रहा है, कि उसके पिताजी सरकारी स्कूल में शिक्षक रहे हैं, उसके परिवार में चार लोग शिक्षक हैं। मैं घर के बुजुर्ग से पूछता हूं, “कैसा लग रहा है आपको, यह सब देखकर ?” कहते हैं, “ये लोग अच्छा काम कर रहे हैं, बच्चों को कुछ तो सिखा रहे हैं।”

मैं कहता हूं, “आपने बच्चों को पढ़ाने के लिए जगह दी है, इसके लिए आपका धन्यवाद ।” वैसी ही धीमी आवाज़ में कहते हैं, “बच्चों के लिए व्यवस्था तो करनी ही पड़ती है ।”

उधर चांदकिरन, दीनानाथ और नैयर को घेरकर खड़े काफ़ी बच्चे ज़िद कर रहे हैं कि वे भी कहानी सुनायेंगे ।

– सर्वेंद्र विक्रम, एडवाइज़र, प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन

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