सिट्टी एक्सप्रेस

Sitti-Express

पश्चिमी चंपारन के लगभग आखिरी छोर पर एक जगह भितिहरवा है, जहां गांधी जी ने 1917 में सत्याग्रह आरंभ किया था। यहां से थोड़ी दूर पर सिट्टी गांव है। बाल्मीकि टाइगर रिजर्व के किनारे से होकर बहने वाली पंडई नदी में कुछ लोग सोना खोजने की कोशिश में पानी को उलीच रहे हैं। उनको भरोसा है कि नदी के पत्थरों में उनको सोने के कण मिल जाएंगे।

नदी की पतली धारा के उस पार से बकरियों का एक झुंड लिये औरतें चली आ रहीं हैं। सबसे पीछे-पीछे चल रही एक बुजुर्ग औरत से पूंछता हूं, “ये सारी बकरियां आपकी हैं?” वे हंस कर कहती हैं, “कहां! कुछ हमारी हैं।“

नदी के उस पार डूबते सूरज को धुंध ने ढंक लिया है, लेकिन आभास है कि दिन डूबा नहीं है। खेतों के शुरू होने से पहले नदी के बहाव से छूटी जमीन को समतल करके फुटबाल, दौड़, लंबी कूद, वॉलीबॉल खेलने के लिए काम में लाया जा रहा है। यहां खेल प्रशिक्षक सुमित पांडेय जी कहते हैं, अगली साल का पता नहीं हैं कि यह मैदान हमारे पास रहेगा या नदी अपने पाट में समेट लेगी।

सन् 2018 में पश्चिमी चंपारन के गौनाहा ब्लॉक के भितिहरवा संकुल के 12-13 स्कूलों में प्रथम के लोगों ने जब काम करना शुरू किया तो नामांकन की तुलना में बहुत कम बच्चे पढ़ने आते थे। बच्चों के माता-पिता और समुदायों के साथ काम शुरू किया गया। समुदाय के लोगों, खासकर माताओं से बातचीत करके स्थिति को समझने की चेष्टा की गयी। इस दौरान बच्चों की भाषा और गणित की दक्षताओं पर भी काम किया गया।

बच्चों को स्कूल आने का मन करे, इसके लिए खेलों की शुरूआत की गयी। यह माना गया कि इससे बच्चों का समग्र विकास होगा और उनमें समूह में काम करने की क्षमता आएगी । सुमित बताते हैं, शुरूआत में अभिभावकों में इस बात को लेकर प्रतिरोध था कि लड़के और लड़कियां एक साथ खेलेंगे। धीरे धीरे एथलेटिक्स, कबड्डी, फुटबॉल और अन्य गतिविधियां शुरू की गईं। जिसमें आसपास के गांवों के लड़के-लड़कियां भी रोज़ आने लगे हैं। थोड़े बड़े लड़के-लड़कियां किसी खेल विशेष में अपना अभ्यास जारी रखते हैं। उनकी देखा-देखी बहुत छोटे बच्चे जिनकी संख्या काफी है, वे भी आ जाते हैं, उनके साथ तरह-तरह की गतिविधियां कराई जाती हैं, उनको बहुत आनंद आता है ।

प्रथम की ओर से इस प्रकल्प को संचालित करने की जिम्मेदारी दीनानाथ सिन्हा पर है। वे कहते हैं कि जब यहां के बच्चों को पुरस्कार मिलने लगे, या लड़कियों ने प्रथम की जर्सी पहन कर प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया तो स्कूल के शिक्षक इस बात से नाराज़ होने लगे कि इस तरह तो स्कूल का नाम कैसे होगा। वे बच्चियां तो उनके स्कूल में पढ़ती हैं, स्कूल को क्रेडिट मिलना चाहिये ।

दीनानाथ शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि एक दिन एक लड़की ने कहा, सर, वैसे तो लोग हमसे मिलने, इमारा खेल देखने आते हैं, फोटो भी खींचा जाता है, अच्छा लगता है। लेकिन अगर खेल का और सामान मिल जाता, फुटबॉल मिल जाता, जर्सी मिल जाती तो अच्छा रहता। कभी-कभी खेल में चोट लग जाती है, उसके लिए स्प्रे मिल जाता।

सुमित बताते हैं, ये लड़कियां पहली बार जिला स्तर पर फुटबॉल खेलने गयीं तो इनके पास बूट नहीं था। बिना बूट के मैच नहीं खेल सकती थीं तो लड़कों के बूट पहन कर वे खेलीं और आखिरी मैच में वे महज एक गोल से हार गईं। लड़कियां कहने लगीं, हमारे पास कब बूट होगा? प्रियंका ने मां से ज़िद कर ली। तब उसके लिए घर की पालतू बकरी बेचकर पहली बार 400 रूपये का बूट खरीदा गया। अब प्रियंका जिला टीम की कैप्टेन हैं और स्टेट टीम में डिफेन्डर है, बिहार टीम की ओर से आंध्र प्रदेश और जम्मू कश्मीर खेलने जा चुकी है।

सबकी मेहनत के नतीजे आने लगे है। दिसंबर 2022 में गौतम कुमार ने राष्ट्रीय स्तर पर भारोत्तोलन में कांस्य पदक और खेलो इंडिया में कांस्य पदक जीता। उन्होंने राज्य स्तर पर एक स्वर्ण पदक भी जीता। खेल नर्सरी में सीखने और अभ्यास करने वालों में से 15 बच्चों को गहन खेल प्रशिक्षण के लिए राज्य की एकलव्य योजना के अधीन हास्टल में रहने के लिए चुना गया है। 56 बच्चे फुटबॉल और कबड्डी में जिला स्तर की टीमों का हिस्सा रहे हैं।

अगस्त 2023 में, यहां की टीम अंतर-राज्य प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए उड़ीसा गई। 14 वर्ष से कम आयु की लड़कियों की टीम ने सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल टूर्नामेंट अंडर-17 में जिला चौंपियन घोषित किया गया और वे राज्य स्तर पर खेलने गईं।

सितंबर 2024 में, अंडर – 14 आयु की लड़कियों की टीम ने राज्य स्तर पर एसजीएफआई खेलों में ओवरआल चौंपियन का खिताब जीता। दिसंबर 2024 में 4 लड़कियों ने एसजीएफआई द्वारा जम्मू कश्मीर में आयोजित अंडर-17 फुटबॉल की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लिया। जनवरी 2025 में एसजीएफआई द्वारा रांची में आयोजित राष्ट्रीय एथलेटिक्स खेलों में भी भाग लिया|

नदी के किनारे की ज़मीन में रेत ही रेत है। उस पर भागना आसान नहीं है। लेकिन वे सब दौड़ लगा रही हैं। वे लंबी कूद का अभ्यास कर रही हैं। वे जब थोड़ी दूर से दौड़ना शुरू करती हैं तो लगता है कि वे सचमुच बहुत लंबी छलांग लगाएंगीग, आज नहीं तो कल। लड़कियां फुटबॉल में किक लगा रहीं हैं, जैसे वे पृथ्वी को हवा में उछालने की कोशिश कर रही हों। उनका उत्साह जैसे संक्रामक हो। शुभमय वेटलिफ्टिंग के लिए सीमेन्ट से बनाये गये वेट को दोनो हाथों हवा में उठाकर मुस्कराने लगते हैं। नैयर मैदान में खिलाड़ियों के साथ-साथ भाग रहे हैं।

खेल उपकरणों और साधनों की कमी इन बच्चों और किशोरों खासकर लड़कियों का हौसला कमज़ोर नहीं कर सकी है। उन्होंने वेट और स्ट्रेन्थ की ट्रेनिंग के अपने तरीके और साधन बना लिये हैं। सुमित कहते हैं, इन लड़कियों को प्रोटीन नहीं मिलता, घरों में दाल नहीं बनती। वे कहीं से चने का बंदोबस्त कर लेते हैं। उन्हें भिगोकर रखा गया है। सबने एक-एक मुट्ठी उस थैले से निकाल लिया है।

अभी अंधेरा घिरने वाला है। पांडे जी कहते हैं, चलो निकलो तुम लोग, घर जाओ। कहते हैं, साइकिल से जाना है इन सबको दूर-दूर| उन सबकी आंखों में थकान की जगह चमक है, उनमें शायद आशा ही नहीं भरोसा भी है, उन्हें बहूत दूर तक जाना है।

– सर्वेंद्र विक्रम, एडवाइज़र, प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन

प्रस्तावना: यह लेख अपने मूल रूप में प्रकाशित किया गया है, इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। लेखक के कार्य की सत्यता को बनाए रखने के लिए व्याकरणिक त्रुटियाँ, टाइपोग्राफिक गलतियाँ, या शैली बरकरर रखी गई हैं। यहां व्यक्त किए गए दृष्टिकोण व्यक्तिगत लेखकों के हैं और संगठन के दृष्टिकोण या पदों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।